एक सोच....
मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था,
कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको;
हवाओं में लहराता आता था दामन,
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको;
कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे,
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको.......
मगर उसने रोका, ना उसने मनाया,
ना दामन ही पकड़ा, ना मुझको बिठाया,
ना आवाज़ ही दी, ना वापस बुलाया,
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया.....
यहाँ तक कि उस से जुदा हो गया मैं,
जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया मैं..........
~ कैफी आज़मी
कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको;
हवाओं में लहराता आता था दामन,
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको;
कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे,
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको.......
मगर उसने रोका, ना उसने मनाया,
ना दामन ही पकड़ा, ना मुझको बिठाया,
ना आवाज़ ही दी, ना वापस बुलाया,
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया.....
यहाँ तक कि उस से जुदा हो गया मैं,
जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया मैं..........
~ कैफी आज़मी
2 Comments:
write smthing on which we can give any comment :O
asa mein toh sochna padh jaata hai kya comment de:(:(
i cant read hindi :D
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